एक विभेदित व्यवसाय की मांग शुरू में कम है। लेकिन अगर यह पर्यावरण के अनुकूल और आम आदमी के लिए किफायती है तो आप धीमे कारोबार का फायदा उठा सकते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण कृष्ण समाधान है,
हर आदमी कुछ नया करने की सोचता है। कुछ लोग अपने सपने पर पानी डालते हैं और उसे अंकुरित होने देते हैं। उन्हीं में से एक है कृष्णा परिवार। कुछ नया करने की उनकी चाहत पूरी हो गई है। अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, कृष्णा एक वेतनभोगी नौकरी के लिए चला गया और स्थानीय सामग्री और मशीनों की मदद से इसे प्रबंधित किया। आज हम अनिल परिवार द्वारा निर्मित इनोवेटिव प्रोडक्ट्स की जानकारी दे रहे हैं।
कृष्णा प्रताप मूल रूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन के रहने वाले हैं। कृष्णा ने उज्जैन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मशीन और उपकरण डिजाइनर के रूप में काम करना शुरू किया। अफ्रीका, यमन, युगांडा समेत कई देशों की बड़ी कंपनियों में काम किया। कृष्णा ने अपनी नौकरी छोड़ दी और कुछ अलग करने की चाह में विदेश से भारत वापस आ गया।
ऐसे शुरू हुआ सफर कृष्ण लक्ष्मण ने 2004 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार में रहना शुरू किया। चार-पांच साल पहले एक गरीब किसान कृष्णा के पास आया और गाय के गोबर से धिम्मी बनाने की मशीन मांगी। कृष्णा ने पंजाब की एक कंपनी का कैटलॉग देखा तो कीमत 65 हजार बताई। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर कृष्णा ने अनुमान लगाया कि इस मशीन को अधिकतम 20-25 हजार में तैयार किया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने इसे खुद बनाने का फैसला किया। कृष्णा का कहना है कि मशीन बनाने का कारोबार वहीं से शुरू हुआ।
गाय के गोबर से शुरू किया स्वरोजगार इतना ही नहीं, कृष्ण ने देखा कि आग के लिए जंगल बड़ी मात्रा में काटे जा रहे हैं, इसलिए उन्होंने गाय के गोबर से गोबर बनाना शुरू किया। उन्होंने गांव के कब्रिस्तान में मशीन लगवा दी। वहां गाय के गोबर से बना एक ब्लॉक दाह संस्कार के लिए इस्तेमाल किया गया था। यहीं से गोबर से उत्पादों का उत्पादन शुरू हुआ।
एक छोटे से विचार से शुरू हुआ यह सफर अब बड़ा बन गया है। कृष्णा के काम की सराहना की। उनकी दिलचस्पी बढ़ती चली गई। इसके बाद कृष्णा ने तरह-तरह के सांचों की मशीनें बनाईं। वर्तमान में गाय के गोबर से 12 प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इसमें दीया, अगरबत्ती, पेन स्टैंड, बर्तन, मूर्ति, साबुन शामिल हैं।
एक किलो गाय के गोबर से करीब 110 दीये बनते हैं। गाँव में रोजगार के सीमित अवसर होने के कारण अधिकांश युवा शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। कृष्णा का कहना है कि अगर आप केवल 7 हजार से स्वरोजगार की शुरुआत करते हैं तो आप आसानी से 35 से 40 हजार रुपए प्रति माह कमा सकते हैं। गाय का गोबर पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। एक दीया बनाने के लिए अधिकतम 25 से 30 पैसे की आवश्यकता होती है। लेकिन बाजार में एक दीया एक से पांच रुपए में बिकता है। कृष्ण कहते हैं, एक किलो गाय के गोबर से चार बर्तन बनते हैं।
बढ़ी हुई मांग: शुरुआत में मशीन और गोबर उत्पादों की ज्यादा मांग नहीं थी। अब मांग बढ़ रही है। उत्तराखंड के अलावा तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत के कई राज्यों में गोबर उत्पादों की भारी मांग देखी जा रही है। साथ ही, कई लोगों ने मशीनें खरीदीं और अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। कृष्ण ने बहुतों की सहायता की है। उसने तमिलनाडु की एक महिला को दीया बनाने की मशीन भेजी थी। कृष्णा ने बताया कि अब वह हर महीने 30-40 हजार रुपए कमा लेती हैं।
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